Rajasthan GK Short Tricks of Forts
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Rajasthan GK Short Tricks | राजस्थान के महत्वपूर्ण किले – सम्पूर्ण जानकारी
चित्तौड़ का किला
चित्तौड़गढ़ राजस्थान का एक शहर है। भारत के विशालतम किलो में से एक है। यह एक वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है। यह किला विशेषतः चित्तौड़ का किला, मेवाड़ की राजधानी के नाम से जाना जाता है। पहले इसपर गुहिलोट का शासन था और बाद में सिसोदिया का शासनकाल था।चित्तौड़ी राजपूत के सूर्यवंशी वंश ने 7 वी शताब्दी से 1568 तक परित्याग करने तक शासन किया और 1567 में अकबर ने इस किले की घेराबंदी की थी। यह किला 180 मीटर पहाड़ी की उचाई पर बना हुआ है और 691.9 एकर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस किले से जुडी बहुत सी इतिहासिक घटनाये है। आज यह स्मारक पर्यटको के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
15 से 16 वी शताब्दी के बाद किले को तीन बार लुटा गया था। 1303 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने राना रतन सिंह को पराजित किया था। 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने बिक्रमजीत सिंह को पराजित किया था और 1567 में अकबर ने महाराणा उड़ाई सिंह द्वितीय को पराजित किया था।जिन्होंने इस किले को छोड़कर उदयपुर की स्थापना की थी। लेकिन तीनो समय राजपूत सैनिको ने जी-जान से लड़ाई की थी। उन्होंने महल को एवं राज्य को बचाने की हर संभव कोशिश की थी लेकिन हर बार उन्हें हार का ही सामना करना पड़ रहा था। चित्तोड़गढ़ किले के युद्ध में सैनिको के पराजित होने के बाद राजपूत सैनिको की तकरीबन 16,000 से भी ज्यादा महिलाओ और बच्चो ने जौहर करा लिया था। और अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था।
2013 में कोलंबिया के फ्नोम पेन्ह (Phonm Penh) में वर्ल्ड हेरिटेज कमिटी के 37 वे सेशन में चित्तोड़गढ़ किले के साथ ही राजस्थान के पाँच और किलो को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया था।
कुंभलगढ का किला
- अरावली की तेरह चोटियों से घिरा, जरगा पहाडी पर (1148 मी.) ऊंचाई पर निर्मित गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने वि. संवत् 1505 ई. में अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की स्मृति में बनवाया।
- इस दुर्ग का निर्माण कुम्भा के प्रमुख शिल्पी मण्डन की व देखरेख में हुआ।
- इस दुर्ग को मेवाड़ की आंख कहते है।
- इस किले की ऊंचाई के बारे में अतृल फजल ने लिखा है कि ” यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।”
- कर्नल टाॅड ने इस दुर्ग की तुलना “एस्टुकन”से की है।
- इस दुर्ग के चारों और 36 कि.मी. लम्बी दीवार बनी हुई है। दीवार की चैड़ाई इतनी है कि चार घुडसवार एक साथ अन्दर जा सकते है। इस लिए इसे ‘भारत की महान दीवार’ भी कहा जाता है।
गागरोन का किला
- झालावाड़ से चार किमी दूरी पर अरावली पर्वतमाला की एक सुदृढ़ चट्टान पर कालीसिन्ध और आहू नदियों के संगम पर बना यह किला जल दुर्ग की श्रेणी में आता है।
- यह दुर्ग बिना किसी नीव के मुकंदरा पहाड़ी की सीधी चट्टानों पर खड़ा अनूठा किला है।
- इस किले का निर्माण कार्य डोड राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था।
- डोडा राजपूतों के अधिकार के कारण यह दुर्ग डोडगढ/ धूलरगढ़ नामों से जाना गया।
- “चैहान कुल कल्पद्रुम” के अनुसार खींची राजवंश का संस्थापक देवन सिंह उर्फ धारू न अपने बहनोई बीजलदेव डोड को मारकर धूलरगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा उसका नाम गागरोण रखा।
जयगढ दुर्ग(जयपुर)
- यह दुर्ग चिल्ह का टिला नामक पहाड़ी पर बना हुआ है।
- इस दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जययसिंह ने करवाया। लेकिन महलों का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया।
- इस दुर्ग में तोप ढ़ालने का कारखाना स्थित है।
- सवाई जयसिंह निर्मित जयबाण तोप पहाडि़यों पर खडी सबसे बड़ी तोप मानी जाती है।
- आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री श्री मति इन्द्रागांधी ने खजाने की प्राप्ति के लिए किले की खुदाई करवाई गई।
- विजयगढ़ी भवन (अंत दुर्ग) कच्छवाह शासकों की शान है।
नाहरगढ़ दुर्ग(जयपुर)
- इस दुर्ग का निर्माण 1734 में सवाई जयसिंह नें किया।
- किले के भीतर विद्यमान सुदर्शन कृष्ण मंदिर दुर्ग का पूर्व नाम सूदर्शनगढ़ है।
- नाहरसिंह भोमिया के नाम पर इस दुर्ग का नाहरगढ़ रखा गया।
- राव माधों सिंह – द्वितीय ने अपनी नौ प्रेयसियों के लिए एक किले का निर्माण नाहरगढ़ दुर्ग में करवाया। इस दुर्ग के पास जैविक उद्यान स्थित है।
बयाना दुर्ग (भरतपुर)
- यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- इस दुर्ग का निर्माण विजयपाल सिंह यादव न करवाया।
- अन्य नाम- शोणितपुर, बाणपुर, श्रीपुर एवं श्रीपथ है।
- अपनी दुर्भेद्यता के कारण बादशाह दुग व विजय मंदिर गढ भी कहलाता है।
- दर्शनिय स्थल
- 1.भीमलाट- विष्णुवर्घन द्वारा लाल पत्थर से बनवाया गया स्तम्भ
- 2.विजयस्तम्भ- समुद्र गुप्त द्वारा निर्मित स्तम्भ है।
- 3.ऊषा मंदिर
- 4. लोदी मीनार
सिवाणा दुर्ग(बाड़मेर)
- यह दुर्ग गिरी तथा वन दोनों श्रेणी का दुर्ग है।
- कुमट झाड़ी की अधिकता के कारण इसे कुमट दुर्ग भी कहते है।
- इस दुर्ग का निर्माण श्री वीरनारायण पवांर ने छप्पन की पहाडि़यों में करवाया।
- इस दुर्ग में दो साके हुए है।
- 1.पहला साका – सन् 1308 ई. में शीतलदेव चैहान के समय आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण सांका हुआ।
- 2.दूसरा साका – वीर कल्ला राठौड़ के समय अकबर से सहायता प्राप्त मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण के कारण साका हुआ। यह साका सन 1565 ई. में हुआ।
अजयमेरू दुर्ग(तारागढ़)
- बीठली पहाड़ी पर बना होने के कारण इस दुर्ग को गढ़बीठली के नाम से जाना जाता है।
- यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है। यह दुर्ग पानी के झालरों के लिए प्रसिद्ध है।
- इस दुर्ग का निर्माण अजमेर नगर के संस्थापक चैहान नरेश अजयराज ने करवाया।
- मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज (राणा सांगा के भाई) पृथ्वी राज (उड़ाणा पृथ्वी राज) ने अपनी तीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इस दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा।
- रूठी रानी (राव मालदेव की पत्नी) आजीवन इसी दुर्ग में रही।
- तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण विशप हैबर ने इसे “राजस्थान का जिब्राल्टर ” अथवा “पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर” कहा है।
- इतिहासकार हरबिलास शारदा ने “अखबार-उल-अखयार” को उद्घृत करते हुए लिखा है, कि तारागढ़ कदाचित भारत का प्रथम गिरी दुर्ग है।
- तारागढ़ के भीतर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरान साहेंब (मीर सैयद हुसैन) की दरगाह स्थित है।
- रूठी रानी का वास्तविक नाम उम्रादे भटियाणी था।
रणथम्भौर दुर्ग (सवाई माधोपुर)
सवाई माधोपुर शहर के निकट स्थित रणथम्भौर दुर्ग अरावली पर्वत की विषम आकृति वाली सात पहाडि़यों से घिरा हुआ एरण दुर्ग है। यह किला यद्यपि एक ऊँचे शिखर पर स्थित है, तथापि समीप जाने पर ही दिखाई देता है। यह दुर्ग चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है तथा इसकी किलेबन्दी काफी सुदृढ़ है। इसलिए अबुल फ़ज़ल ने इसे बख्तरबंद किला कहा है। इस किले का निर्माण कब हुआ कहा नहीं जा सकता लेकिन ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों ने करवाया था।
हम्मीर देव चौहान की आन-बान का प्रतीक रणथम्भौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 में ऐतिहासिक आक्रमण किया था। हम्मीर विश्वासघात के परिणामस्वरूप लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर(एकमात्र जल जौहर) कर लिया। यह जौहर राजस्थान के इतिहास का प्रथम जौहर माना जाता है।
रणथम्भौर किले में बने हम्मीर महल, हम्मीर की कचहरी,सुपारी महल(सुपारी महल में एक ही स्थान पर मन्दिर और गिर्जाघर स्थित है।), बादल महल, बत्तीस खंभों की छतरी, जैन मंदिर तथा त्रिनेत्र गणेश मंदिर उल्लेखनीय हैं। रणथम्भौर दुर्ग मे लाल पत्थरों से निर्मित 32 कम्भों की एक कलात्मक छत्रि है जिसका निर्माण हम्मिर देव चौहन ने अपने पिता जेत्र सिंह के 32 वर्ष के शासन के प्रतिक के रूप में करवाया था।
मेहरानगढ़ दुर्ग(जोधपुर)
- राठौड़ों के शौर्य के साक्षी मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव मई, 1459 में रखी गई।
- मेहरानगढ़ दुर्ग चिडि़या-टूक पहाडी पर बना है।
- मोर जैसी आकृति के कारण यह किला म्यूरघ्वजगढ़ कहलाता है।
दर्शनिय स्थल
- 1.चामुण्डा माता मंदिर -यह मंदिर राव जोधा ने बनवाया। 1857 की क्रांति के समय इस मंदिर के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण इसका पुनर्निर्माण महाराजा तखतसिंह न करवाया।
- 2.चैखे लाव महल- राव जोधा द्वारा निर्मित महल है।
- 3.फूल महल – राव अभयसिंह राठौड़ द्वारा निर्मित महल है।
- 4. फतह महल – इनका निर्माण अजीत सिंह राठौड ने करवाया।
- 5. मोती महल – इनका निर्माता सूरसिंह राठौड़ को माना जाता है।
- 6. भूरे खां की मजार
- 7. महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश (पुस्तकालय)
- 8. दौलतखाने के आंगन में महाराजा तखतसिंह द्वारा विनिर्मित एक शिंगगार चैकी (श्रृंगार चैकी) है जहां जोधपुर के राजाओं का राजतिलक होता था।
- दुर्ग के लिए प्रसिद्ध उन्ति – ” जबरों गढ़ जोधाणा रो”
- ब्रिटिश इतिहासकार किप्लिन ने इस दुर्ग के लिए कहा है कि – इस दुर्ग का निर्माण देवताओ, फरिश्तों, तथा परियों के माध्यम से हुआ है।
- दुर्ग में स्थित प्रमुख तोपें- 1.किलकिला 2. शम्भू बाण 3. गजनी खां 4. चामुण्डा 5. भवानी
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